भाषा के कितने रूप होते हैं? | Bhasha ke kitne Roop Hote Hain

भाषा के कितने रूप होते हैं ? भाषा के कितने रूप हैं? भाषा किसे कहते हैं? संस्कृत परिभाषा के अनुसार भाषा वह है जिसे बोला या मुँह से कहा जा सके। भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य अपनी बातों को,मन के भावों या विचारों को बोलकर, सुनकर, लिखकर या पढ़कर दूसरों के सामने प्रकट करता है। 

दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जिस माध्यम से हम अपने भावों या विचारों को दूसरों को समझा सकें और दूसरों के भावों को समझ सकें, उसे भाषा कहते है। जैसे-हिंदी, अंग्रेजी, बंगाली, पंजाबी आदि।भाषा का प्रयोग  केवल इंसान ही कर सकते हैं अन्य प्राणी नही।

विचारों का आदान-प्रदान केवल भाषा द्वारा ही सम्भव है।मनुष्य के उस आतंरिक अभिव्यक्ति को भाषा कहते हैं, जिसके द्वारा मनुष्य अपने मन में आने वाले विचारों और भावों को सुव्यवस्थित तरीके से बोलकर, लिखकर या संकेत के रूप में व्यक्त करता है।

भाषा कितने प्रकार के होते हैं? भाषा के कितने रूप होते हैं

भाषा मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं:- 

1.मौखिक भाषा (Oral Language)

2.लिखित भाषा (Written Language)

3.सांकेतिक भाषा (Symbolic or Indicative Language)

  • मौखिक भाषा (Oral Language)

जिस भाषा को मुख से बोलकर समझाया जाता है, वह भाषा मौखिक भाषा कहलाती है। 

भाषा का एक ऐसा रूप जिसमें व्यक्ति अपने विचारो को बोलकर प्रकट करता है, और दूसरा व्यक्ति सुनकर उसे समझता है मौखिक भाषा कहलाती है। इसमें बोलने वाला (वक्ता) बोलकर अपनी बात कहता है व सुनने वाला (श्रोता) सुनकर उसकी बात समझता है। 

जैसे- सोनू गीत गा रहा है। मोदी जी भाषण दे रहे हैं।

दूरदर्शन, रेडिओ, वीडियो आदि मौखिक भाषा के उदाहरण हैं। 

लिखित भाषा (Written Language)

लिखित भाषा में जब कोई व्यक्ति अपने शब्दों को लिखित रूप से समझाने का प्रयास करता है। जैसे पत्र लिखना।

भाषा का ऐसा रूप जिसमें हम अपने विचारों को लिख कर प्रकट करते हैं और दूसरे इन्हें पढ़कर समझते हैं, लिखित भाषा कहलाता है। लिखित भाषा को समझने के लिए व्यक्ति को पढ़ा-लिखा होना आवश्यक है। इस भाषा का प्रयोग हमेशा पत्र लिखने तथा पढ़ाई-लिखाई में काम आता है। 

जैसे- प्रिया पत्र लिख रही है। श्रिया अपना गृह कार्य कर रही है।

पत्र लिखना, समाचार पत्र आदि इसके उदाहरण हैं। 

सांकेतिक भाषा (Symbolic or Indicative Language)

सांकेतिक भाषा में व्यक्ति अपने विचारों को सामने वाले को संकेत के रूप में समझाने का प्रयास करता है।

भाषा के जिस माध्यम से हम अपने विचारों को इशारों (संकेतो) के द्वारा दूसरे वक्ता को समझा सकते हैं, उसे सांकेतिक भाषा कहा जाता है। 

दूसरे तरीके से हम ये कह सकते हैं कि भाषा के इस रुप से हम अपने विचारों एवं भावो को इशारों, विशिष्ट संकेतों द्वारा प्रकट करते हैं और दूसरे के विचारों को इशारों, विशिष्ट संकेतों द्वारा समझते हैं।

सांकेतिक भाषा का प्रयोग सिर्फ वही लोग करते हैं जो बोल या सुन नहीं सकते। 

ट्रैफिक नियमों का पालन करना भी सांकेतिक भाषा का ही रूप है। सांकेतिक भाषा सार्वभौमिक रूप से ग्रहण करने वाला भाषा नहीं है इसलिए व्याकरण में इसका अध्ययन नहीं किया जाता है। 

इशारा करना, किसी जानवर को किसी चीज संबंधित समझाना है तो इस भाषा का उपयोग करके समझा सकते हैं। 

भाषा के बारे में विस्तार ने जानने से पहले ये जानना ज्यादा जरूरी है की शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई? तथा शब्द बनाने में किसका महान योगदान रहा? 

दिव्य काल में एक महान व्याकरण के निर्माता महर्षि पाणिनी हुआ करते थें। उन्होंने ही शब्द का निर्माण किया। महर्षि पाणिनी भगवान शिव के  भक्त थें। वे शिव की उपासना करते थें। एक बार वे भगवान शिव की साधना में लीन थें, तभी भगवान शिव ने अपना डमरु बजाया। उन्होंने १४ बार अपना डमरु बजाया, और हर बार उनके डमरु से शब्द निकले। महर्षि पाणिनी ने उन शब्दों को सुना, और उन शब्दों को अपने दिमाग में लिपिबद्ध किया। वे शब्द है-

1.अ इ उ ण्

  2.ऋ लृ क्

  3.ए ओ ड़् 

4.ऐ औ च् 

5.ह य व र ट् 

6.लञ्

 7.ञ म ड़् ण न म् 

8. झ भ ञ्

 9. घ ड़ ध ष् 

10. ज ब ग ढ़ द श् 

11. ख फ छ ठ थ च ट त व् 

12.क प य् 

13.श ष स र् 

14.ह ल्

ये महर्षि पाणिनी को महेश्वर की कृपा से प्राप्त हुए थे। इसलिए यही चौदह सूत्र माहेश्वर सूत्र कहलाए। महा ऋषि पाणिनी ने इन सूत्रो के आधार पर स्वरों एवं व्यंजनों को पहचान कर उन्हें अलग- अलग किया। 

सबसे पहले उन्होंने संस्कृत व्याकरण की रचना की क्योंकि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है।  संस्कृत के द्वारा सभी भाषाओं का निर्माण हुआ। हिन्दी, उर्दू, मराठी, बांग्ला, जर्मनी, लैटिन,अरबी, फारसी तथा अन्य सभी भाषाएँ संस्कृत से ही निकली है। 

भाषा कि उत्पत्ति

भाषा की उत्पत्ति उस काल से है जब मानव ने बोलना आरम्भ किया और ‘भाषा’ सीखना आरम्भ किया। इस विषय में बहुत मतभेद हैं।

भाषा की उत्पति दैविक माना जाता है। लेकिन जैसे-जैसे भाषाविज्ञानियों की खोज आगे बढ़ती गई, इस सिद्धांत पर भी प्रश्न उठने लगे । जैसे- जो लोग ईश्वर को नहीं मानते हैं, उनका तर्क है कि यदि मनुष्य को भाषा मिलनी थी जन्म के साथ क्यों नहीं मिली। अन्य सभी जीवों को बोलियों का उपहार जन्म के साथ-साथ मिला लेकिन, मानव शिशु को जन्म लेते भाषा नहीं मिली। शिशु अपने समाज में रहकर धीरे-धीरे भाषा को सीखता है। 

यदि भाषा की दैवी उत्पत्ति हुई होती हो सारे संसार की एक ही भाषा होती तथा बच्चा जन्म से ही भाषा बोलने लगता। 

भाषा का महत्व

भाषा मनुष्य को अन्य पशुओं से अलग करती है भाषा समुदाय की परम्परा एवं संस्कृति की निरंतरता बनाये रखने का साधन है। भाषा से ही पूर्वजों की जीवनचर्या उनकी सामाजिक परम्पराओं आदि की जानकारी आज भी हमें मिलती है। भाषा ही चिंतन एवं मनन का माध्यम है।

भाषा की विशेषताएँ

  • भाषा सामाजिक संपत्ति है।
  • भाषा पैतृक संपत्ति नहीं है।
  • भाषा व्यक्तिगत संपत्ति नहीं है।
  • भाषा अर्जित संपत्ति है।
  • भाषा सर्वव्यापक है।
  • भाषा सतत प्रवाहमयी है।
  • भाषा संप्रेषण मूलत: वाचिक है।
  • भाषा चिरपरिवर्तनशील है।
  • भाषा का प्रारंभिक रूप उच्चरित होता है।
  • भाषा का आरंभ वाक्य से हुआ है।
  • भाषा मानकीकरण पर आधरित होती है।
  • भाषा का अंतिम रूप नहीं है।
  • भाषा नैसर्गिक क्रिया है।
  • भाषा की निश्चित सीमाएँ होती हैं।

भाषा एक सामाजिक क्रिया है। यह वक्ता एवं श्रोता दोनों के आचार-विनियम साधन है।

निष्कर्ष

आज संसार में जितनी भी भाषाएँ बोली या सुनी जाती है, बहुत ही सरलता से हम उस भाषा का प्रयोग करते है। कितना कठिन और कितना अद्भूत काम उन्होंने सबके लिए किया है।

आशा है इस लेख से आप भाषा तथा इसके रूपो को सही ढंग से समझ सके होंगे।

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