आज का हमारा आर्टिकल बाबर का इतिहास (Babar history in Hindi) से संबंधित है।
मुगलों का कई सालों तक भारत तथा अन्य देशों में शासन रहा है। इतिहास में जितने भी मुगल सल्तनत से संबंधित राजा आए हैं, उन्होंने मुगल साम्राज्य और मुस्लिम समुदाय की नींव को रखने के लिए हर कोशिश की और कुछ राजा को यह तक कामयाब भी रहे। आज हम भारत में कई किले और मकबरे देखते हैं जो मुगल सल्तनत तथा मुगल साम्राज्य से संबंध रखने वाले राजाओं ने बनवाए हैं। परंतु राजा और प्रजा का शासन समय के साथ समाप्त हो गया।
जब भी मुगल सल्तनत या राजवंश की बात आती है तो बाबर का नाम सबसे पहले याद किया जाता है क्योंकि भारत तथा अन्य राज्यों में मुगल सल्तनत को स्थापित करने के लिए बाबर को ही मुख्य रूप से श्रेय दिया जाता है। क्या आप जानते हैं कि बाबर कौन था और बाबर का इतिहास क्या था (Babar History in Hindi) अगर नहीं तो हमारे आज के लिए के माध्यम से आप बाबर के इतिहास से संबंधित तथा बाबर से जुड़ी कुछ मुख्य बातों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
ये भी पढ़े – केदारनाथ मंदिर का इतिहास
Babar History in Hindi :-
बाबर मुगल साम्राज्य का प्रथम संस्थापक कहा जाता है और बाबर का पूरा नाम जहीरूद्दीन मुहम्मद था। बाबर का जन्म उज़्बेकिस्तान में हुआ था। बाबर के तैमूर और चंगेज खान के वंशज के रूप में जाना जाता था। बाबर ने अपने समय में मुंबईयान नामक पद शैली का निर्माण किया था। बाबर की भाषा चग़ताई भाषा थी। परंतु आम बोलचाल की भाषा के लिए बाबर फारसी भाषा का प्रयोग करता था। बाबर ने चगताई भाषा अपनी जीवनी लिखी जिसका नाम बाबरनामा था। भले ही बाबर मुगल साम्राज्य से संबंध रखता था परंतु उसके प्रशंसक, जनता, सेवक और सेना में तुर्क एवं फारसी लोग शामिल थे। इसके अलावा बाबर की सेना में मध्य एशिया के कबीले भी शामिल थे।
बाबर को लेकर ऐसा माना जाता है कि वह बहुत शक्तिशाली था और केवल व्यायाम के लिए वह अपने कंधों पर दो व्यक्तियों को लेकर दौड़ता था। मुगल साम्राज्य की कथाओं में ऐसा माना जाता है कि बाबर शरीर से इतना तंदुरुस्त था कि वह जब भी युद्ध करने जाता या किसी भी कार्य से बाहर निकलता और यदि उसकी मार्ग में कोई भी नदी आती तो वह उसे पार करके ही जाता था।
बाबर का इतिहास :-
मुगल साम्राज्य के इतिहास में बाबर का इतिहास (Babar History in Hindi) सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि बाबर ही मुगल साम्राज्य का संस्थापक रहा है। बाबर बहुत ही कम उम्र में राजा बन गया था और उसे 12 वर्ष की आयु में साल 1494 में फरगना घाटी के शासक का पदभार सौंपा गया था। बाबर कम उम्र का था इसलिए उसके चाचा ने उसके साथ चालाकी की और उसे फरगना घाटी के पदभार से हटा दिया। जब उसे गद्दी से हटा दिया गया तो उसने कई साल निर्वासन का सहारा लिया और उसके साथ सिर्फ किसान और कुछ लोग ही थे।
अपनी हार का बदला लेने के लिए उसने साल 1496 में उज़्बेकिस्तान के एक शहर समरकंद पर हमला किया और उसे जीत लिया। समरकंद को हासिल करने में बाबर को 7 महीने लगे इसके बाद वह फरगना घाटी को दोबारा हासिल करना चाहता था इसलिए उसने अपना एक सैनिक सरगना को फरगना घाटी पर कब्जा करने के लिए भेज दिया परंतु जब बाबर ने फरगना घाटी को हासिल करने का निर्णय किया तो उसकी सेना ने समरकंद में ही उसका साथ छोड़ दिया जिसके परिणाम स्वरूप वह समरकंद को भी हार गया और फरगना घाटी पर भी कब्जा नहीं कर पाया।
समरकंद को हासिल करने कि उसने एक बार फिर कोशिश की और 1501 में उसने समरकंद को हासिल कर लिया परंतु उज़्बेक खान मुहम्मद शिबानी ने उसे हरा दिया और समरकंद को हासिल कर लिया इस तरह बाबर की समरकंद को हासिल करने की दूसरी कोशिश भी नाकामयाब रही।
फरगना घाटी और समरकंद की हार के बाद बाबर ने सबसे पहले अपनी सेना पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया और उसने 3 सालों तक वफादार सैनिकों की शक्तिशाली एवं चतुर सेना बनाने का समय लिया। इसके फलस्वरूप उसने बदख्शान प्रांत के लोगों को अपने सेना में शामिल किया। वर्ष 1504 में बाबर ने हिंदू कुश की बर्फीली चोटियों को पार करके काबुल पर अपना स्थान प्राप्त किया।
इसके बाद हेरात के तैमूरवंशी हुसैन बैकरह जो कि बाबर के दूर के रिश्तेदार के रूप में भी जाना जाता था से बाबर की मुलाकात हुई और उसने मोहम्मद शिवानी के खिलाफ युद्ध करने की नीति बनाई परंतु 1506 में हुसैन की मृत्यु के कारण बाबर का यह सपना भी अधूरा रह गया। हुसैन की मृत्यु के बाद बाबर ने हेरात पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया परंतु समय के साथ साधनों की कमी के कारण उसे लगभग 2 महीने के बाद हेरात को छोड़ना पड़ा। बाबर ने अपनी जीवनी बाबरनामा में हेरात को “बुद्धिमान दिग्गजों से भरा शहर” आदि वाक्य से वर्णन किया है।
साल 1504 में बाबर ने काबुल को जीत लिया। इसके बाद साल 1507 में उसमें कंधार को जीतकर बादशाह की उपाधि प्राप्त की। बाबर ने अपने समय में भारत पर 5 बार आक्रमण किया और पानीपत के मैदान में दिल्ली सल्तनत के आखिरी राजा इब्राहिम लोदी को परास्त करके भारत में मुगल साम्राज्य की नींव स्थापित की। बाबर ने अपने समय में कई राज्यों पर अपना स्थान ग्रहण किया जिसमें उसने लगातार तीन साल 1527 में खानवा, साल 1528 में चंदेरी एवं 1529 में घग्गर को हासिल किया।
मुगल साम्राज्य की नींव भारत में तथा कई देशों में स्थापित करने के बाद तथा अपने जीवन काल में कई सफलताओं एवं राज्यों को हासिल करने के बाद 1530 में उसने अंतिम सांस ली और उसका देहांत हो गया। बाबर की मृत्यु 26 दिसंबर 1530 में भारत के आगरा शहर में हुई थी।
निष्कर्ष :-
इस आर्टिकल में हमने आपको बाबर का इतिहास (Babar History in Hindi) से संबंधित जानकारी दी है।
ऐसे ही मुगल सल्तनत के सभी राज्यों से संबंधित इतिहास जानने लेख पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट को फॉलो करें।