आज का हमारा आर्टिकल महाराणा प्रताप का इतिहास (Maharana Pratap History in Hindi) से संबंधित है।
वर्तमान समय में भारत में लोकतंत्र शासन कायम है यानी कि वह देश जहां पर लोगों का शासन चलता हो जहां पर प्रतिनिधि जनता चुनती है जो उनके लिए काम करता है और समाज के कल्याण के लिए नियमों को लागू करता है।
परंतु इतिहास में भारत में राजाओं का शासन था कई बड़े राजा काफी लंबे काल तक अपना शासन भारत में जमाए हुए थे। मुगलों से लेकर राजपूतों तक राजाओं का ही शासन कायम था। इनमें से एक महान योद्धा महाराणा प्रताप सिंह थे उन्होंने अपने जीवन काल में कई बड़ी से बड़ी सफलता हासिल की और दुश्मनों को धूल चटाई।
लेकिन क्या आप महाराणा प्रताप के इतिहास (Maharana Pratap history in Hindi) के बारे में जानते हैं अगर नहीं तो हमारे आज के लेख के माध्यम से आपको महाराणा प्रताप के इतिहास और महाराणा प्रताप से संबंधित मुख्य तथ्य जानने को मिलेंगे।
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महाराणा प्रताप सिंह का जीवनी | Maharana Pratap History in Hindi
राजा महाराणा प्रताप का पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था और उनका जन्म 9 मई वर्ष 1540 में हुआ था। महाराणा प्रताप सिंह का जन्म राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था। उनके पिता का नाम राजा उदय सिंह और माता का नाम रानी जयवंताबाई था। महाराणा प्रताप सिंह उदयपुर और मेवाड़ के राजा थे।
वह भारतीय इतिहास के शक्तिशाली चतुर एवं समझदार राजाओं में से एक माना जाते थे और उन्हें त्याग, वीरता, शौर्य, पराक्रम और दृढ़ निश्चय आदि विशेषताओं से संपूर्ण एवं अमर राजा के रूप में जाने जाते थे। महाराणा प्रताप ने मुगलों के राजवंश को हमेशा से नकारा और कई युद्धों में मुगलों को हराकर अपनी बलवंता एवं चतुराई का प्रमाण दिया।
महाराणा प्रताप सिंह के जन्म को लेकर लेखकों की अपनी धारणाएं हैं।अंग्रेजी लेखक जींस टॉप के मुताबिक महाराणा प्रताप का जन्म मेवाड़ के कुंभलगढ़ में हुआ था तथा भारतीय इतिहासकार विजय नाहर के मुताबिक महाराणा प्रताप सिंह का जन्म उनके कालगण और राजवंश परंपरा के अनुसार पाली के राजमहल में हुआ था।
हल्दीघाटी का युद्ध | Haldi ghati ka yudh
महाराणा प्रताप सिंह का जीवन का सबसे बड़ा युद्ध हल्दीघाटी का युद्ध रहा है। उन्होंने अपने 500 साथियों के साथ ऐतिहासिक राजा मानसिंह की 80 हजार सैनिकों की सेना का सामना करा। महाराणा प्रताप की ओर से भील सरदार राणा पूंजा जी ने अपना सराहनीय प्रदर्शन हल्दीघाटी युद्ध के दौरान दिया और मरते दम तक दुश्मन सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इसके अलावा झाला मान सिंह ने अपने प्राणों की चिंता किए बिना युद्ध भूमि में महाराणा प्रताप सिंह की रक्षा की और उन्हें युद्ध भूमि को छोड़ने के लिए निवेदन किया। इस युद्ध के दौरान कई राजपूतों ने महाराणा प्रताप सिंह के साथ गद्दारी की थी और उनका साथ छोड़कर अकबर के अधीन चले गए थे।
साल 1576 में राजा मानसिंह ने अकबर की ओर से हल्दीघाटी स्थान पर पहले से ही 3000 सैनिकों को महाराणा प्रताप सिंह के समक्ष के लिए तैनात कर दिया था और दूसरी तरफ महाराणा प्रताप सिंह को अफगानी राजाओं का साथ मिला था जिन्होंने राजा मानसिंह की सेना के सामने अपने सैनिक खड़े किए और हल्दीघाटी युद्ध में अपना योगदान दिया। अफगानी सैनिकों में सबसे ज्यादा हकीम खान सूर में महाराणा प्रताप सिंह का आखिरी दम तक साथ दिया। हल्दीघाटी का युद्ध कई दिनों तक चला इसीलिए प्रजा को मेवाड़ के किले के भीतर आश्रय दिया गया जिसमें राजकीय लोग और पूजा साथ मिलकर रहने लगे।
हल्दीघाटी का युद्ध ना केवल तलवार, धोखे एवं विजय और पराजय का युद्ध बल्कि इसमें त्याग की भावना भी भरपूर थी। इस युद्ध के दौरान मेवाड़ में खाने-पीने की कमी होने लग गई थी और इसीलिए वहां की महिलाओं ने अपने बच्चों और सैनिकों के खानपान में करो ना हो इसके लिए स्वयं के खानपान में कमी की। प्रताप के इस हौसले को देख अकबर भी दंग रह गया।
लेकिन मेवाड़ में अत्याधिक अन्न की कमी होने के कारण महाराणा प्रताप सिंह यह युद्ध हार गए। परंतु उन्होंने इस युद्ध से अपने शौर्य एवं बलवंता का प्रमाण दिया। जब मेवाड़ की महिलाओं को यह ज्ञात हुआ कि महाराणा प्रताप सिंह युद्ध हार गए हैं तो सभी महिलाओं ने जौहर प्रथा के अनुसार स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया।
महाराणा प्रताप सिंह से जुड़े तथ्य | Facts about maharana pratap singh in Hindi
- महाराणा प्रताप के संदर्भ में एक तथ्य है कि अकबर ने कई बार मेवाड़ को हासिल करने की कोशिश की परंतु उसे हर बार महाराणा प्रताप की ओर से उसे मुंहतोड़ जवाब मिला।
- हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप सिंह ने अत्याधिक समय पहाड़ों एवं जंगलों में व्यतीत किया।
- मेवाड़ की पावन भूमि को अकबर के कब्जे से बचाने के लिए महाराणा प्रताप ने यह दृढ़ निश्चय लिया था कि मेवाड़ से मुगलों की वापसी तक वह अपने राजमहल और आरामदायक जीवन को त्याग कर जंगलों में ही निवास करेंगे अन्यथा वह मेवाड़ वापस नहीं आएंगे।
- अकबर वैसे तो महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा दुश्मन था परंतु जब उसे यह पता चला था महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई है तो बहुत दुख हुआ था। भले ही धार्मिक एवं राजनीतिक तौर पर उनके विचार नहीं मिलते थे परंतु वह हृदय से प्रताप सिंह के गुणों की सराहना करता था। महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर के दरबारी राजस्थानी में एक संदेश भी लिखा था।
महाराणा प्रताप सिंह का देहांत | Maharana Pratap Singh death in Hindi
अपने जीवन में कई युद्ध में विजय प्राप्त करने वाले महाराणा प्रताप सिंह का 19 जनवरी 1597 में देहांत हो गया। उनकी मृत्यु का कारण जंगल में एक घटना रही है। महाराणा प्रताप सिंह ने अपने पूरे जीवन काल में अकबर को मेवाड़ के रियासत हासिल करने की सारी कोशिशों को नाकाम किया और दृढ़ निश्चय के साथ अकबर की सेना का कई युद्धों में सामना कर उसे हराया।
निष्कर्ष :-
इस आर्टिकल में हमने आपको महाराणा प्रताप सिंह के इतिहास (Maharana Pratap Singh history in Hindi) और महाराणा प्रताप सिंह से संबंधित कुछ मुख्य तत्वों के बारे में जानकारी प्रदान की है।
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