ब्रह्म समाज की स्थापना कब हुई | Brahma Samaj

आज का हमारा आर्टिकल ब्रह्म समाज (Brahmo Samaj) पर आधारित है।

इतिहास में समाज से कुरीतियों को खत्म करने के लिए कई शिक्षकों, समाज सुधारकों, राजनेताओं एवं स्वतंत्रता सेनानियों ने मिलकर आंदोलन चलाएं।

इन आंदोलनों की वजह से ही वर्तमान में कई सामाजिक कुरीतियां खत्म हो चुकी है। समाज सुधार आंदोलन में से एक ब्रह्म समाज आंदोलन भी था।

आइए  ब्रह्मा समाज आंदोलन के बारे में विस्तार में जानकारी प्राप्त करें।

ब्रह्म समाज (Bhramo Samaj)

ब्रह्म समाज सामाजिक एवं धार्मिक आधारशिला पर शुरू किया गया एक सुधार आंदोलन था तथा इस आंदोलन से बंगाल का पुनर्जागरण काल काफी प्रभावित हुआ था। ब्रह्म समाज आंदोलन की शुरुआत राजा राममोहन और द्वारकानाथ टैगोर ने साल 1828 में की थी। ‌

ब्रह्म समाज आंदोलन का उद्देश्य विभिन्न प्रकार की धार्मिक आस्थाओं तथा धार्मिक प्रथाओं को मानने वाले व्यक्तियों को एकजुटता के बल पर एक करना था और सामाजिक कुरीतियों को खत्म करना था। ऐतिहासिक भारत में कई धार्मिक कुरीतियां जैसे सती प्रथा, बाल विवाह, तांत्रिक आस्थाओं के बल पर जीव हत्या आदि को विभिन्न प्रकार के धर्मों द्वारा माना जाता था परंतु राजा राममोहन ने ब्रह्मा समाज आंदोलन की नींव डालकर इन सभी धार्मिक एवं सामाजिक कुरीतियों के प्रति आवाज उठाई और अन्य समाज से नष्ट करने की मांग की जिसमें वह काफी हद तक सफल रहे।

साल 1814 में राजा राममोहन रॉय द्वारा “आत्मीय सभा” की स्थापना की गई तथा यह सभा भविष्य में जाकर ब्रह्म समाज नाम से जानी गई और इस ब्रह्म समाज आंदोलन में आगे देवेंद्रनाथ ठाकुर भी शामिल हुए।

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ब्रह्मा समाज आंदोलन का उद्देश्य :-

ब्रह्मा समाज का उद्देश्य ईश्वर की आराधना करना, मानव‌ता को अपनाकर हीन भावना एवं जातिगत भेदभाव को खत्म करना, आपस में भाईचारा कायम रखना तथा सभी धर्मों को एक-समान नजरिए से देखना तथा सभी धार्मिक ग्रंथों में दी गई अच्छी शिक्षा को ग्रहण करना और किसी भी धर्म की प्रति हीन भाव न‌ रखना है।‌ जब राजा राममोहन राय ने ब्रह्मा समाज का गठन किया तो बंगाल में वेदों एवं उपनिषदों को बांग्ला भाषा में अनुवाद वाचन‌के रूप में करके उनका साप्ताहिक कार्यक्रम चलाया गया।

पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि हिंदू धर्म तथा सभ्यता समाप्त होती जा रही है इसलिए ब्रह्मा समाज सुधारकों ने वेदों में लिखी गई शिक्षा को आधार बनाया और समाज में उसका गुणगान किया। इसके अलावा ब्रह्मा समाज द्वारा जातिगत प्रथाएं तथा मूर्ति पूजा एवं कर्मकांड के अस्तित्व को नकारा और केवल वेदों में लिखी बातों को अपनाने पर जोर दिया।

ब्रह्म समाज के सिद्धांत निम्नलिखित हैं-:

  • हम सबका मालिक अर्थात ईश्वर एक है और ईश्वर ही इस संपूर्ण संसार का पालनकर्ता और रक्षक है। ईश्वर द्वारा प्रदान की गई शक्ति, प्रेम, न्याय तथा पवित्रता आदि विशेषताओं को स्वीकार करना हर व्यक्ति परम धर्म होना चाहिए।
  • व्यक्ति के शरीर में समिल्लित आत्मा अमर है और व्यक्ति की आत्मा सामाजिक उन्नति करने की क्षमता है।
  • आत्मिक शुद्धि और आध्यात्मिकता से जुड़ने के लिए ईश्वर की भक्ति और प्रार्थना करना जीवन का मूल तत्व है। मूर्ति पूजा तथा धार्मिक आस्था से जुड़े किसी भी वस्तु को भक्ति का साधन‌ नहीं मानना चाहिए परंतु वेदों में लिखी गई शिक्षा को ग्रहण करना चाहिए।
  • नीच जाति के प्रति सहानुभूति रखना एवं छूआछूत को खत्म करना और उनके पक्ष में सरकार तक उनकी बात पहुंचाना।
  • स्त्रियों को सती प्रथा तथा अन्य धार्मिक रूढ़ियों से मुक्त कर एक समान रूप देना तथा महिला शिक्षा को बढ़ावा देना एवं घरेलू महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति शिक्षित करना था।

इस आर्टिकल में हमने आपको ब्रह्मा समाज आंदोलन से संबंधित जानकारी प्रदान की है।‌

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